(कहीं से त सगुन करहीं के रहल ह, औरी कुछ ना बुझात रहल ह, एसे ई गीत एहिजा डाल देनी ह। उम्मीद बा कि आगे सब केहू इ ब्लाग पर कुछ न कुछ लिखत रही...)
भंवरवा के तोहरा संग जाई,
आवे के बेरियां सभे केहू जाने,
दु्अरा पे बाजल बधाई,
जाए के बेरियां, केहू ना जाने,
हंस अकेले उड़ जाई....
भंवरवा के तोहरा संग जाई,
देहरी पकड़ के मेहरी रोए,
बांह पकड़ के भाई,
बीच अंगनवां माई रोए,
बबुआ के होखेला बिदाई,
भंवरवा के तोहरा संग जाई,
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
सतगुरु सरन में जाई,
जो यह पढ़ के अरथ बैठइहें,
जगत पार होई जाई,
भंवरवा के तोहरा संग जाई।
Saturday, December 1, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
गीत तो बड़ा नीक रहल विवेक जी! बकिर कहूँ से राग सहित मिलि जात ना, तो जानि कि मजै आइ जात!
गीत तो नीक ह! बकि राग सहित मिलि जात, त मजै आइ जात!
Post a Comment